अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति है और उस अनेकता के मूल में निश्चित रूप से भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थित जनजातियां है। भारत की जनजातियां विभिन्न क्षेत्रों में रहते हुये अपनी संस्कृति के माध्यम से भारतीय संस्कृति को एक विशिष्ट के रूप में अपना योगदान प्रदान करती हैं। चूंकि अनेको जनजातियां होने के कारण उनकी संस्कृति में भी भिन्नता पायी जाती है। जनजाति वह सामाजिक समुदाय है जो राज्य के विकास के पूर्व अस्तित्व में था। जनजाति वास्तव में भारत के आदिवासियों के लिए उपयोग होने वाला एक वैधानिक पद है। भारत के संविधान मे ंअनुसूचित जनजाति पद का प्रयोग भी हुआ है और इनके लिए विषेश प्रवधान लागू किये गये है।
भारत की कुल अनुसूचित जनजातियों की संख्या का 1.09 प्रतिशत उ0प्र0 में पायी जाती है, उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत (2011 की जनगणना एक के अनुसार) 0.06 प्रतिशत है, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति के संविधान आदेश (अनुसूचित जनजातियां), 1967 के अनुसार 05 जनजातियों, बुक्सा, जौनसारी, भोटिया, थारू एवं राजी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है, परन्तु 2003 में 10 और जनजातियों को इसमें शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश में विभिन्न जनजाति पायी जाती है—
क्र0 | जनजाति का नाम | जिला |
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1 | गोंड, ओझा, धुरिया, नायक, पथारी और राजगोंड | महराजगंज, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर और सोनभद्र |
2 | खरवार, राजगोंड | देेवरिया, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी और सोनभद्र |
3 | सहरिया | ल्लितपुर |
4 | परहिया, बैगा, अगारिया, पटारी, भुइयां | सोनभद्र |
5 | पंखा, पानिका | सोनभद्र एवं मिर्जापुर |
6 | चेरो | सोनभद्र ओर वाराणसी |
7 | थारू | गेारखपुर |
8 | बुक्सा या भोक्सा, महीगीर | बिजनौर |
1. गोंड जनजाति – गोंड जनजाति भारत की एक प्रमुख जनजाति समुदाय है। भारत के कटि प्रदेश—विंध्यपर्वत, सिवान, सतपुड़ा पठार, दक्षिण पश्चिम में गोदावरी नदी फैले हुये पहाड़ों और जंगलों में रहने वाली एक जनजाति है। जो संभवतः पॉचवी—छठी शताब्दी में दक्षिण से गोदवरी तट से होते हुये मध्य भारत के पहाणों में फैल गयी। गोंडों की जातीय भाषा गोंडी है।
2. थारू जनजाति— थारू अपने को मूलतः सिसोदिया वंशीय राजपूत कहते है। थारूओं के कुछ वंशगत उपाधियां (सरनेम) है।, राणा, कथरियां, चौधरी। कुछ समय पूर्व तक थारू अपना वंशानुक्रम महिलाओं की ओर से खोजते थे। थारूओं के शारीरिक लक्षण प्रजातीय मिश्रण के द्योतक है। इनमें मंगोलीय तत्वों की प्रधानता होते हुए भी अन्य भारतीयों से साम्य के लक्षण पाये जातेे है।ं आखेट, मछली मारना, पशुपालन एवं कृषि इनके जीवनयापन के प्रमुख साधन है। टोकरी तथा रस्सी बुनना सहायक धन्धों में शामिल है। टर्नर (1931) के मत से विगत थारू समाज दो अर्द्धाशों में बंटा था जिनमें से प्रत्येक के छह गोत्र होते थे। दोनो अर्द्धाशों में पहले तों ऊंचे अर्धांशें में नीचे अर्धांश की कन्या का विवाह सीांव था पर धीरे—2 दोनों अर्द्धांश अंतरर्विवाही हो गये ”काज” ओर ”डोला” आर्थात वधूमूल्य और कन्यापहरण पद्धति से विवाह के स्िाान पर अब थारूओं में भी सांस्करिक विवाह होने लगे है। विधवा द्वारा देवर से या अन्य अविवाहित पुरूष से विवाह इनके समाज में मान्य है। अपने गोत्र में भी यह विवाह कर लेते है। थारू में सगाई का को ”दिखनौरी” तथा गौने की रस्म को ”चाला” कहते है। इनमें नातेदारी (रिश्तेदारी) का व्यवहार सीमाओं में बद्ध होतो है। इस जनजाति के लोगों का रिस्तेदारी में मधुर संबंध देखने को मिलता है। देवर—भाभी का स्वछंद व्यवहार भी इनके ययां स्वीकृत है।
थारू नेपाल और भारत के सीमावर्ती तराई क्षेत्र में पायी जाने वाली एक जनजाति है। नेपाल की सकल जनसंख्या का लगभग 6.6 प्रतिशत लोग थारू है। भारत में बिहार के चम्पारन जिले में और उत्तराखण्ड के नैनीताल और उधम सिंह नगर में थारू पाये जाते है। थारूओं का मुख्य निवास स्थान जलोढ़ मिट्टी वाला हिमालय का सम्पूर्ण उपपर्वतीय भाग तथा उत्तर प्रदेश के उत्तरी जिले वाला तराई प्रदेश है। ये हिन्दू धर्म मानते है तथा हिन्दुओं के सभी त्योहार मनाते है। यह दीपावली के त्योंहार को शोक के रूप में मनाते है।
1. थारू जनजाति के लोग ’’किरात’’ बंश से सम्बन्धित है।
2. इस जनजाति के लोग कद में छोटे, पीली चमड़ी और चौड़ी मुखाकृति के होते है।
3. इस जनजाति के लोगों का मुख्य भोजन चावल है।
4. ये लोग अपने घरों का निर्माण लकड़ी के लट्ठो और नरकुलों से करते है।
5. ये लोग अभी भी संयुक्त परिवारों में रहना पसंद करते है।
6. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि ये लोग दीपावली को शोक पर्व के रूप में मनाते है।
3. खरवार जनजाति- खरवार जनजाति के लोग मुख्यतः सोनभद्र जिले में निवास करते है इनकी प्ररंभिक आर्थिक गतिविधि कृषि रही है। एक ही वार्षिक फसल और उपयुक्त मौसम पर उनकी निर्भरता के कारण खुद को बनाये रखने के लिए पशुपालन, मछली पकड़ना, शिकार आदि काम में संलग्न होते है। ये लोग हिन्दू धर्म के अनुसार रीति-रिवाज का पालन करते है। इनके प्रमुख पर्व जिउतिया, अनन्त चतुर्दशी, नवरात्रि होली आदि है। इस जनजाति के लोगों का भोजन मंसाहारी एवं शकाहारी दोनो होता है। ये लोग मुख्यतः गेंहूॅं और चावल का भोजन करते हैै। खरवार नागपुरी और हिन्दी भाषा बोलते है परन्तु इनकी भाषा में कर्कशता अधिक देखी जाती है। खरवार की छः उपजाति है जो सूरजवंशी, द्वालबन्दी, पटबन्दी, खैरी भोगता और मंझिया है। खरवार जनजाति का प्रमुख नृत्य करमा है।
4. बुक्सा जनजाति- बुक्सा जनजाति के लोग मुख्य रूप से बिजनौर जिले में निवास करते है। अधिकांश लोगों का मत है कि बुक्सा जनजाति पतवार राजपूत घराने से संबंध रखती है। बुक्सा जनजाति के लोग मुख्य रूप से हिन्दी भाषा का प्रयोग करते है। इनका मुख्य भोजन मछली व चावल है। इसके अलावा ये लोग मक्का एवं गेंहॅू की रोटी और दूध-दही का प्रयोग करते है। बुक्सा जनजाति चार सामन्य वर्गो में बटी है-ब्राह्मण, क्षत्रिय, अहीर और नाई। हिन्दू जातियों के समान ही ये अन्तर्विवाही समूह के होते है। बोक्सा जनजाति के लोग बिना भेदभाव के भाईचारे के साथ जीवन व्यतीत करते है। ’’गोत’’ अथवा ’’गोत्र’’ बुक्सा समाज बुक्सा समाज की व्यवहारिक मूल समाजिक इकाई है। बुक्सा जनजाति में भी अनुलोम प्रतिलोम विवाह प्रचलित है। ये लोक अधिकांशता संयुक्त परिवार में ही निवास करते है। बुक्सा जनजाति के लोग हिन्दू धर्म को मानते है। इनके व्रत व त्योहार हिन्दू धर्म के समान ही होते है। बुक्सा जनजाति के लोग प्रायः उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में निवास करते है। इनका मुख्य व्यवसाय खेती एवं पशुपालन है।
5. माहीगिरी जनजाति- इस जनजाति लोग मुख्यतः बिजनौर जिले में निवास करते है। इसके अलावा सहारनपुर, जलालाबाद, किरतपुर, मनेरा एवं मण्डवार में भी निवास करते है। इस जनजाति के लोगो का मुख्य व्यवसाय मछली पालन है एवं इसके साथ-साथ शिकार भी करते है। महीगिरी जनजाति के लोग एक विशेष प्रकार की भाषा का इस्तेमाल करते है, जो खड़ी बोली से मिलती जुलती है। माहीगिरी जनजाति के लोग अपने समुदाय में ही विवाह करते है। इस जनजाति का मुख्य भोजन के रूप में मांस का प्रयोग करते है। इस जनजाति का सामाजिक संगठन अति सरल होता है ये लोग अपनी आवश्यताओं की पूर्ति हेतु स्वयं साधन उपलब्ध करते है। इस जनजाति में शिक्षा का काफी अभाव है।