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सांस्कृतिक क्षेत्र : अवध

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अवध की संस्कृति

उत्तर प्रदेश का अवध क्षेत्र, राम की ये पावन जन्म भूमि , गंगा जमुनी तेहजीब का अनोखा संगम है, एक तरफ जहाँ नवाबी तमीज ओ तहजीब है, तो दूसरी तरफ राम भक्ति में रची बसी अयोध्या की संस्कृति ।

  • लखनऊ
    उत्तर प्रदेश का अवध क्षेत्र, राम की ये पावन जन्म भूमि , गंगा जमुनी तेहजीब का अनोखा संगम है, एक तरफ जहाँ नवाबी तमीज ओ तहजीब है, तो दूसरी तरफ राम भक्ति में रची बसी अयोध्या की संस्कृति ।
  • अयोध्या
    अयोध्या घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध नगरी है, यहाँ से होकर बहती सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्तद्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि उल्लेखनीय हैं। मंदिरों में ‘कनक भवन‘ सबसे सुंदर है। लोकमान्यता के अनुसार कैकेयी ने इसे सीता को मुंह दिखाई में दिया था।
  • खान पान
    अवध क्षेत्र की अपनी एक अलग खास नवाबी खानपान शैली है। इसमें विभिन्न तरह की बिरयानीयां, कबाब, कोरमा, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, जर्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा और रोटियां आदि शामिल हैं, जिनमें काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब लाजवाब हैं। लखनऊ शहर में जहां एक ओर 1804 में स्थापित राम आसरे हलवाई की मक्खन मलाई एवं मलाई-गिलौरी है, वहीं अकबरी गेट पर मिलने वाले हाजी मुराद अली के टुण्डे के कबाब हैं। अभी और भी है जनाब अन्य नवाबी पकवान जैसे ‘दमपुख्त‘, लच्छेदार प्याज और हरी चटनी के साथ परोसे गय सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं ।
  • रहन सहन
    अवध में कला और संस्कृति का संगम उसके परिधानों में भी मिलता है । इसमें सबसे खास है सनबादवू की चिकनकारी द्य महीन कपड़े पर सुई-धागे से विभिन्न टांकों द्वारा की गई हाथ की कारीगरी लखनऊ की चिकन कला कहलाती है इसी विशिष्टता के कारण ही यह कला सैंकड़ों वर्षों से अपनी लोकप्रियता बनाए हुए है।

नाट्य एवं नृत्य

कथक
  • कथक उत्‍तर प्रदेश का एक मुख्‍य नृत्‍य है। ऐसा माना जाता है कि इसका संबंध कथाकारों की आख्‍यायिका कला अथवा कथा वाचकों से है जो प्राचीन समय से आम लोगों को रामायण और महाभारत महाकाव्‍यों और पौराणिक साहित्‍य जैसे धार्मिक ग्रंथो की कथाएं सुनाया करते थे।
  • अपनी हरकतों और अभिव्‍यक्ति परक शब्‍दों का विस्‍तार और परिष्‍कार करते हुए यह कला संभवत रू मध्‍यकाल में दरबारी परिदेश के रूप में रूपान्‍तरित हो गई और मुगल शासनकाल के दौरान यह अपने परवान तक पहुंची।
  • इसके बाद, उन्‍नीसवीं सदी में लखनऊ, जयपुर, रायगढ़ के राज दरबार तथा अन्‍य स्‍थान कथक नृत्‍य के मुख्‍य केन्‍द्रों के रूप में उभरे ।
  • बीसवीं सदी के दौरान जब कथक के प्रशिक्षण और व्‍यवहार को सार्वजनिक संस्‍थानों से अधिक से अधिक सहायता मिलने लगी तब नर्तक समूहों वाली नृत्‍य निर्देशित प्रस्‍तुतियों को कथक के व्‍यवहार में अधिक स्‍थान मिलने लगा।
  • कथक की विषय वस्‍तु का संसार आज बहुत व्‍यापक हो गया है लेकिन फिर भी कृष्‍ण कथा का इसकी कथा सूची में पैरो की हरकतें और घिरनीखाना इसकी मुख्‍य विशेषता होती है और यह मुख्‍यतरू ताल-बद्ध नृत्‍य है।
  • इसमें कथा का आरंभ अमाद से होता है और ये थाट, गट निकास,परान और ततकार तक बढ़ती है ये अन्‍तराल विभिन्‍न ताल और गति में नृत्‍य के अवसर प्रदान करते हैं और ये नृत्‍य भावात्‍मक और अभिव्‍यक्ति परक दोनों तरह का होता है।
  • पारम्‍परिक कथक का संगीत ठुमरी तथा अन्‍य गेय गीत- रूपोंपर आधारित होता है और इसमें मुख्‍य रूप से तबला, पखवाज़ और सारंगी जैसे संगीत वाद्ययत्रोंका उपयोग किया जाता है। आजकल कथक प्रस्‍तुतियों में सितार तथा अन्‍य तार वाले वाद्य यत्रों का इस्‍तेमाल भी किया जाता है।
  • कथक अवध केंद्र रहा है, शास्त्रीय संगीत और नृत्य कलाओं का यहाँ का भातखण्डे संगीत सम विश्वविध्यालय, हर प्रकार कि सांस्कृतिक विधा को संरक्षित करता है साथ ही उसका प्रसार प्रचार कर नयी पीढ़ी को उसे जोड़ता है, यहां शास्त्रीय और लोक दोनों विधाओं में गायन, वादन एवं नृत्य का प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसा माना जाता है की प्रसिद्ध भारतीय नृत्य कथक ने अपना स्वरूप अवध से ही पाया । अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह कथक के बहुत बड़े ज्ञाता एवं प्रेमी थे द्य लखनऊ घराने की शैली के कथक नृत्य में सुंदरता, अदायगी और प्राकृतिक संतुलन है।
  • नौटंकी नौटंकी अत्यंत ही लोकप्रिय और प्रभावशाली लोककला है। यह लोककला जनमानस के मन से भीतर तक जुड़ी हुई है। नौटंकी को गाँवों वालों के लिए जानकारी प्रदान करने, सामाजिक कुरीतियों से परिचित कराने और सस्ता किंतु स्वस्थ मनोरंजन का ज्ञानवर्धक और मनोरंजक साधन माना जाता है। नौटंकी की कानपुर-शैली से जुड़ा सबसे खास नाम है नौटंकी क्वीन गुलाब बाई जिन्होंने डांस, डायलाग, म्यूजिक, रोमांस, ह्यूमर, मैलोडंामा में फ्यूजन का प्रयोग कर थियेटर की दुनियाँ में नाम कमाया और लोगों का मनोरंजन किया
  • रामलीला अवध की रामलीला का मूलाधार गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘‘रामचरितमानस‘‘ है परम्परागत रूप से राम के चरित और उनकी लीलाओं पर आधारित ये लोक नाट्य कला अवध की संस्कृति का अभिन्न अंग है, पूरे देश में प्रचलित अयोध्या में होने वाली राम लील देश के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग प्रकार से प्रदर्शन किये जाते है। ।
  • रामलीला-अवध रामलीला को उत्तर प्रदेश का एक लोकप्रिय पारंपरिक लोक नृत्य माना जाता है। यह मुख्य रूप से रामायण में भगवान राम के जीवन से संबंधित है। इस नृत्य में अयोध्या से भगवान राम के वनवास, रावण पर उनकी सफलता और सीता के साथ उनकी बातचीत की कहानी को दर्शाया गया है।

अवध क्षेत्र के प्रमुख लोक गीत

  • लखनऊ तबला घराना
    लखनऊ घराना, जिसे ‘‘पुराना घरना‘‘ भी कहा जाता है, वह छह मुख्य घराना या तबला में शैलियों में से एक है। यह हथेली के पूर्ण उपयोग, उंगलियों का प्रयोग गूंजने वाली आवाजें, और दायां या टंबल डंम पर अंगूठी और छोटी उंगलियों का उपयोग इसकी विशेषता है।
  • सोहर 
  • कव्वाली 
  • नकटा (नटका) 
  • संस्कार गीत