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कार्यकलाप

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लोक विद्या के संरक्षण हेतु –
* पारम्परिक स्वरुप- आस्था, विश्वास, वेश-भूषा, आहार व्यवहार, प्रदर्श कलाएं, नृत्य गायन वादन तथा अन्य |
* क्रियान्वयन- ब्लाक स्तर पर प्रतिभा खोज हेतु कार्यक्रम, कलाकारों कि निर्देशिका, कार्यशालाओं का आयोजन, सांस्कृतिक चौपाल आदि |

धरोहर के प्रति जागरूकता –
* मूर्त एवं अमूर्त धरोहर- मिट्टि / मूर्ति कला एवं प्रदर्श कलाएं, परंपरा, सामाजिक मूल्य, संस्कार एवं मान्यताएं आदि |
* क्रियान्वयन- सर्वेक्षण, अभिलेखीकरण , लेक्चर डेमोस्ट्रेशन , विडियो/ ऑडियो वयवस्था , लघु प्रकाशन आदि |

लोक संगीत के प्रोत्साहन हेतु कार्यक्रम –
* स्थानीय पारम्परिक शैलीगत , अध्यात्म एवं भौतिक पक्षों कि विशिष्टाओं को उजागर करना, सरंक्षण एवं संवर्द्धन |
* क्रियान्वयन – प्रस्तुतिपरक कार्यशाला एवं सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन |

स्थानीय प्रतिभाओं के प्रोत्साहन हेतु विभिन्न कार्यक्रम –
* पारम्परिक एवं ऐतहासिक कथानकों के प्रसंगों पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम |
* नाट्य/ नौटंकी/ स्वांग आदि का मंचन, कार्यशाला एवं लघु प्रकाशन |

क्षेत्रीय पारम्परिक विधाओं के संरक्षण एवं प्रदर्शन हेतु कार्यक्रम –
* क्षेत्र कि महत्वपूर्ण तिथियाँ, लोकगाथा, मेले, हाट, उत्सव, महोत्सव उद्देश्यपरक जनश्रुतियों एवं क्षेत्रीय काव्यधारा |

क्षेत्रीय कला कौशल का संरक्षण एवं संवर्धन –
* क्रियान्वयन- विद्यापरक कार्यशाला, पारम्परिक प्रतियोगिताएं, प्रदर्शनी, सांस्कृतिक प्रश्नोत्तरी आदि |

गोष्ठियां एवं पारम्परिक कार्यक्रम-
* स्थानीय प्रचलित मान्यताओं का पर्यवेक्षण एवं उनको परिष्कृत करने हेतु विभिन्न कार्यक्रमों के साथ – साथ नई दिशाओं एवं स्थापनाओं हेतु वांछित कार्यक्रमो का आयोजन |