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बैगा जनजाति

आमतौर पर उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। बैगा जनजाति की कुछ उपजातियाँ भी हैं जैसे नाहर, बिझवार, नरोटिया, कड़ भैना, राय भैना, भरोटिया आदि। यह जनजाति ‘स्थानांतरण खेती’ करती है।

बैगा जनजाति मध्यप्रांत के जनजातियों में विशेष स्थान रखता है। इस जनजाति के विकास स्तर को देखते हुए शासन ने इसे विशेष पिछड़ी जनजाति समूह में रखा है। विशेष पिछड़ी जनजाति होने के कारण बैगा जनजाति को सरकार का सरक्षण प्राप्त है जिसके फलस्वरूप इस जनजाति के लिए अनेक शासकीय योजनाये चलाये जा रहें है। बैगा जनजाति जितनी प्राचीन जनजाति है उतनी ही प्राचीन बैगाओं की संस्कृति भी है। बैगा जनजाति अपने संस्कृति को संजोये हुए है। इनका रहन-सहन, खान-पान अत्यंत सादा होता है। बैगा जनजाति के लोग वृक्ष की पूजा करते है तथा बूढ़ा देव एवं दूल्हा देव को अपना देवता मानते है। बैगा झाड़-फूक एवं जादू-टोना में विश्वास करते है। इनकी वेश-भूषा अत्यंत अल्प होती है। बैगा पुरुष मुख्य रूप से एक लंगोट तथा सर पे गमछा बांधते है, वहीं बैगा महिलाएं एक साड़ी तथा पोलखा का प्रयोग करते है। किन्तु वर्तमान समय में मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान युवक शर्ट-पैंट का भी प्रयोग करने लगे है। बैगा जनजाति की महिलाएं आभूषण प्रिय होती हैं। बैगा महिलाएं आभूषण के साथ-साथ गोदना भी गुदवाती है। इनकी संस्कृति में गोदना का अत्यधिक महत्व है। बैगा महिलाएं शरीर के विभिन्न हिस्से में गोदना गुदवाती हैं। बैगा जनजाति का मुख्या व्यवसाय वनोपज संग्रह, पशुपालन, खेती तथा ओझा का कार्य करना है। आधुनिकता के दौर में बैगा जनजाति की संस्कृति में भी आधुनिकता का समावेश हो रहा है। बैगा अब सघन वन, कंदराओं तथा शिकार को छोड़ कर मैदानी क्षेत्रों में रहना तथा कृषि कार्य करना प्रारंभ कर रहे है। किन्तु बैगा अपने आप को जंगल का राजा और प्रथम मानव मानते है, इनका मानना है कि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई है। बैगाओं के उत्पत्ति के संबंद में अनेक किवदंतियाँ भी विद्मान है, इन किवदंतियों के माध्यम से ये अपने उत्पत्ति संबंधी अवधारणाओं को संजो कर रखे हुवे है। बैगा अपने आप को आदिम पुरुष कहते है, उनका मानना है की वही पृथ्वी का प्रथम मानव है। बैगाओं का ही जन्म सर्वप्रथम हुआ है, वे ही पृथ्वी मे मानव जाति को लाने वाले है उनका सम्बन्ध प्रथम मानव से है। इस प्रकार इस शोध पत्र के माध्यम से बैगाओं के उत्पत्ति संबाधित अवधारणाओं का ऐतिहासिक विश्लेषण किया किया गया है।

  • यह जनजाति सोनभद्र में पाई जाती है
  • शब्दकुंजी – गमछा, पोलखा, गोदना, ओझा, बेवर, कंदरा, कुल्हाड़ी, मंद, पगडण्डी, मीनार, नागा, भुईयां, वैद्य, लंगोट

बैगा जनजाति का ऐतिहासिक अवलोकन

बैगा जनजाति के सम्बन्ध में सर्वप्रथम 1778 ई० में ब्लूम फील्ड ने निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है-

  1. बैगा जंगल काटकर बेवर खेती करते है।
  2. ये ओझा का कार्य करते है और जंगली जड़ी-बूटी से रोगों का उपचार करते है।
  3. ये लोग बांस से चटाई और अन्य उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते है।
  4. साथ ही साथ जंगलों से शहद, कंदमूल और हर्रा इकट्ठा करते है तथा शिकार करना और मछली पकड़ने का कार्य करते है।

बैगा जनजाति के उत्पत्ति संबंधित किवदंतियाँ एवं अवधारणायें :

बैगा जनजाति में उनकी उत्पत्ति सम्बंधी अनेक किवदंतियाँ विद्यमान है जैसे-‘प्राम्भ में भगवान ने नागा बैगा और नागी बैगिन को बनाया, नागा बैगा और नागी बैगिन जंगल में रहने चले गये। कुछ समय पश्चात दोनों की दो संताने हुई। पहला संतान बैगा और दूसरा संतान गोंड़। दोनों संतानों ने अपने बहनों से विवाह कर लिया। आगे चलकर मनुष्य जाति की उत्पत्ति इन्ही दोनों दम्पत्तियों से हुई। पहले दंपत्ति से बैगा हुए और दूसरे दंपत्ति से गोंड़ उत्पन्न हुए।8 बैगा जनजाति अपने आदि पुरुष नागा बैगा को मानते है किन्तु ऐतिहासिक तथ्यों के अभाव होने के कारण नागा बैगा के निवास एवं उत्पत्ति को प्रमाणित करना अत्यंत मुश्किल है। एक बैगा किवदन्ती के अनुसार बैगा जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में यह भी मान्यता है कि – प्रारंभ में पानी ही पानी था भगवान पत्ते में बैठे थे। एक बार भगवान धरती ढूंढे लेकिन धरती मिली नहीं तब ब्रम्हा जी ने अपने छाती के मैल से कौआ का निर्माण किया और कौंवे से बोले कि जाओ और धरती का पता लगाओ। और कौआ उड़ गया। उड़ते-उड़ते उसे केकड़ा दिखा, कौआ केकड़ा के पास गया और बोला झूठ मत बोलना और मुझे धरती की मिट्टी दो। केकड़ा कौआ को दबा कर पाताल लोक ले गया और वहां के राजा ने कौआ को मिट्टी दिया। केकड़ा कौआ को लेकर पाताल लोक से बाहर निकले और कौआ भगवान के पास गया और मिट्टी दे दिया। भगवान मिट्टी को चारो तरफ बिखेर दिए और वही धरती बन गई। भगवान धरती को देखने के लिए गए तब धरती हिलने लगी। फिर भगवान ने अगरिया बनाया, अगरिया ने लोहे की कीलें बनाई और उसे चारो कोने में ठोकने के लिए भगवान ने नागा बैगा बनाया। इसी नागा बैगा ने धरती के चारो तरफ कील ठोक दिया। तभी से बैगा धरती की रक्षा कर रहे है।9 इस किवदंती के अनुसार ब्रम्हा जी ने नागा बैगा बनाया था जो धरती की रक्षा करे।