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लोक एवं जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान का उद्देश्य

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प्रमुख लोक नृत्य

1. करमा नृत्य- करमा नृत्य सोनभद्र और मिर्जापुर के खरवाद जनजाति समूह द्वारा आयोजित किया जाता है।

2. चरकुला नृत्य- चरकुला नृत्य बृज क्षेत्रवासियों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में बैलगाड़ी अथवा रथ के पहिये पर कई घड़े रखे जाते है फिर उन्हें सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है। महिलायें तेल के दीपक अपने सिर पर रखकर नाचती है।

3. धोबिया नृत्य- धोबिया नृत्य पूर्वांचल का प्रचलित नृत्य धोबी समुदाय द्वारा किया जाता है। इसके माध्यम से धोबी एवं गधे के मध्य आजीविका संबंधों का भवप्रवण निरूपण किया जाता है। धोबी समुदाय द्वारा मृदंग, रणसिंगा, झांझ, डेढ़ताल, घुॅघरू, घंटी बजाकर नाचा जाने वाला नृत्य इनके हर उत्सव में किया जाता है। सर पर पगड़ी, कमर में फेंटा, पावों में घुॅघरू, हाथों मे करताल के साथ कलाकारों के बीच काठ का सजा घोड़ा ठुमक-ठुमक कर नाचता है तो गायन नर्तक भी उसी के साथ झूम उठता है। टेरी, गीत, चुटकुले के रंग, साज के संग यह एक अनोखा नृत्य है।

4. मयूर नृत्य- मयूर नृत्य ब्रज में रासलीला के दोरान किया जाता है। इसमें नर्तक मोर के पंख से बने विशेष वस्त्र धारण करते है।

5. ख्याल नृत्य- यह नृत्य पुत्र जन्मोत्सव पर बुंदेलखण्ड में यिा जाता है। इसमें रंगीन कागजों तािा बॉसों की सहायता से मंदिर बनाकर फिर उसे सिर पर रखकर किया जाता है।

6. रास नृत्य- यह नृत्य ब्रज की रासलीला के दौरान किया जाता है। रासक दण्ड नृत्य भी इसी क्षेत्र का एक आकर्षक नृत्य है।

7. झूला नृत्य- झूला नृत्य ब्रज क्षेत्र का नृत्य है, जिसका आयोजन श्रावण मास में किया जाता है। इस नृत्य को इस क्षेत्र के मंदिरों में बड़े उल्लास के साथ किया जाता है।

8. कठघेड़वा नृत्य- यह नृत्य पूर्वांचल में मांगलिग अवसरों पर किया जाता है। इस नृत्य को एक नर्तक अन्य नर्तकों के घेरे के अंदर कृत्रिम घोड़ी पर बैठकर करता है।

9. धींवर नृत्य- यह नृत्य अनेक शुभ अवसरों पर कहार जाति के लोगो द्वारा किया जाता है।

10. शौरा नृत्य- यह नृत्य बुंदेलखण्ड के किसान अपनी फसलों को काटते समय हर्ष प्रकट करने के उद्देश्य से करते है।

11. घोड़ा नृत्य- यह नृत्य बुंदेलखण्ड में मांगलिक अवसरों पर बाजों की धुर पर घोड़ों द्वारा करवाया जाता है।

12. धुरिया नृत्य- यह नृत्य बुंदेलखण्ड के प्रजापति (कुम्हार) स्त्री वेश धारण करके करते है।

13. नटवारी नृत्य- यह नृत्य पूर्वांचल क्षेत्र के अहीरों द्वारा नक्कारे के सुरों पर किया जाता है।

14. देवी नृत्य- यह नृत्य अधिकांशतः बुंदेलखण्ड में ही प्रचलित है। इस नृत्य में एक नर्तक देवी का रूप धारण कर अन्य नर्तकों के सम्मुख खड़ा रहता है और शेष नृर्तक नृत्य करते है।

15. राई नृत्य- यह नृत्य बुंदेलखण्ड की महिलाओं द्वारा विशेषतः श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर किया जाता है।

16. पाई डण्डा नृत्य- बुंदेलखण्ड का अति लोक प्रिय नृत्य पाई डण्डा वहॉं के अहीरो द्वारा किया जाता है।

17. दीवारी व मोरपंख नृत्य- बुंदेलखण्ड विशेषकर चित्रकूट में दीवाली के दिन ढोल-नगाड़े की तान पर आकर्षक वेश-भूषा के साथ मोरपंख धारी लठैत एक दूसरे पर ताबड़तोड़ वार करते हुये दीवारी नृत्य का प्रदर्शन करते है।

18. चौलर नृत्य- मिर्जापुर और सोनभद्र आदि जिलो में चौलर नृत्य अच्छी वर्षा एवं अच्छी फसल की कामना हेतु किया जाता है।

19. ढेढ़िया नृत्य- यह नृत्य फतेहपुर जिले में प्रचलित है। राम के लंका विजय के पश्चात वापस आने पर स्वगत में किया जाता है। इसमें सिरपर छिद्रयुक्त मिट्टी के बर्तन में दीपक रखकर किया जाता है।

20. ढरकहरी नृत्य- सोनभद्र की जनजातियों द्वारा ढरकहरी नृत्य किया जाता हैै।